आरटीई से एडमिशन तो दिया, लेकिन दूसरे खर्च ऐसे बढ़ाए कि 15 हजार बच्चे स्कूल छोड़ गए

आरटीई से एडमिशन तो दिया, लेकिन दूसरे खर्च ऐसे बढ़ाए कि 15 हजार बच्चे स्कूल छोड़ गए


रायपुर / शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत 2012 से अब तक तकरीबन 3 लाख छात्रों को 6 हजार स्कूलों में दाखिला तो मिला, लेकिन इनमें से 15 हजार से ज्यादा बच्चों को पढ़ाई छोड़नी पड़ गई है। जिले के शिक्षा अफसरों (डीईओ) की तरफ से शिक्षा संचालनालय (डीपीआई) को इन बच्चों के एवज में हर महीने डिमांड नोट भेजा जाता है। आला अफसरों ने इसी डिमांड में लगातार कमी के आधार पर माना है कि प्रदेशभर में पिछले 7 साल में बड़ी संख्या में बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है, या बाहर हो गए।


इनके कारणों की पड़ताल में चौंकाने वाली बात यह आ रही है कि आरटीई में दाखिल बच्चों की फीस आदि का खर्च तो सरकार उठाती है, लेकिन निजी स्कूल यूनिफाॅर्म और काॅपी-किताबों के नाम पर इतनी रकम की डिमांड कर रहे हैं कि वहां बच्चों का पढ़ पाना संभव नहीं हो पा रहा है और वे पढ़ाई छोड़ रहे हैं। हैरतअंगेज मामला ये भी है कि आरटीई में दाखिल बच्चे अगर स्कूल छोड़ें तो प्रबंधन को उसके पैरेंट्स से बात कर रिपोर्ट डीईओ को भेजनी है, लेकिन हजारों बच्चों के पढ़ाई छोड़ने के बावजूद जिला शिक्षा अफसरों के पास स्कूलों की ओर से गिनती की रिपोर्ट ही पहुंची हैं।  


आरटीई में कमजोर वर्ग के बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला और पढ़ाई की सोच कई कारणों से प्रभावित हो रही है। भास्कर की पड़ताल में पता चला है कि यूनिफॉर्म, काॅपी-किताब की कीमत व अन्य खर्च की वसूली इस तरह की जाती है कि न देने पर बच्चे खुद स्कूल छोड़ रहे हैं, या फिर प्रबंधन उन्हें बाहर कर रहे हैं। इसके अलावा, बिलासपुर हाईकोर्ट के इस निर्देश का पालन नहीं हो रहा है कि निजी स्कूलों में आरटीई के अंतर्गत एक भी सीट रिक्त नहीं होनी चाहिए। प्रदेश में पिछले साल आरटीई की 80 हजार सीटें थीं, जिनमें से केवल 37 हजार ही भर पाईं, शेष 43 हजार खाली रह गईं। यही नहीं, आरटीई कानून में प्रावधान है कि प्रत्येक शिक्षा सत्र में प्रत्येक शिक्षक को 220 दिन अध्यापन में अनिवार्य रूप से देना है।


केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड और एनसीपीसीआर के सर्वे के मुताबिक शिक्षक सिर्फ 42 दिन ही अध्यापन में दे पा रहे हैं। बाकी समय चुनाव ड्यूटी, जनगणना और अन्य गैर-शैक्षणिक कार्याे में व्यस्त होने लगे हैं। इस मामले में जब आरटीई से दाखिला मिलने के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को पैरेंट्स से बात की गई तो उनका कहना था कि जिन बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला मिला, उनकी काॅपी-किताब, ड्रेस और जूता-मोजे, टाई-बेल्ट और परिवहन के लिए लगभग 10 से 15 हजार रुपए एक बच्चे के पीछे हर साल खर्च करना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष क्रिस्टोफर पॉल ने ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई करने शासन को पत्र भी सौंपा है। 


केस-1 | यूनीफार्म, कापी-किताब आदि खरीदने में हर साल करीब 25-26 हजार रुपए लग रहे हैं
राजनांदगांव के तिलकराम साहू के बच्चों को 3 साल की कोशिश के बाद अारटीई से दाखिला मिला। उनका बेटा क्लास-2 और बेटी केजी-1 में है। दोनों की स्कूल की फीस तो माफ है, लेकिन यूनीफार्म, जूते, मोजे, कापी-किताब खरीदने में हर साल करीब 25-26 हजार रुपए लग रहे हैं। 


केस-2 | भिलाई में खर्च से परेशान कई छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी
भिलाई के निजी स्कूल में 2013-14 में आरटीई के तहत दाखिला लेने वाली साबिया को 2017-18 में स्कूल छोड़ना पड़ा। कैंप-1 के एक स्कूल में दाखिल लोकेश नायक ने भी दूसरे साल यानी 2017-18 में पढ़ाई छोड़ दी। वजह यही थी कि स्कूल के अन्य खर्च पैरेंट्स के बस के बाहर थे।


फैक्ट फाइल 



सत्र 2018-19

























कुल स्कूल   
 
 6,000
 
आरक्षित सीटें     80,000
 
कुल आवेदन     76,875
 
सीटें आबंटित     37,000
 
खाली सीटें     43,000

सत्र 2019-20
 

























कुल स्कूल   
 
 6,451
 
आरक्षित सीटें     86,508
 
कुल आवेदन     99,798
 
आबंटित सीटें    48,154
 
खाली सीटें     38,354

छात्रों को आरटीई में सीधी सुविधा 
 



  •  प्राइमरी में हर छात्र को अधिकतम 7 हजार रुपए वार्षिक

  •  मिडिल के हर छात्र को 11 हजार 400 रुपए वार्षिक

  •  यूनिफार्म 540,शिक्षण सामग्री 250 -450 रु. वार्षिक 


वर्षवार एडमिशन 
 









































वर्ष     संख्या 
 
2012-13    25,084
 
2013-14     

33,560


2014-15   
 
 44,117
2015-16     25,875
 
2016-17     37,933
 
2017-18     41,935
 
2018-19     40,254
 
कुल -2,48, 758

इसे रोकने के लिए इसी साल बना रहे हैं नई नीति
आरटीई से निजी स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चे पढ़ाई अधूरी छोड़कर बाहर हो रहे हैं। स्कूल प्रबंधन भी पढ़ाई छोड़नेवाले बच्चों के बारे में रिपोर्ट शिक्षा अफसरों को नहीं दे रहे हैं, यह बातें भी मेरे संज्ञान में आई हैं। इसे रोकने के लिए इसी साल नीति बना रहे हैं।  -डा. प्रेमसाय सिंह टेकाम, शिक्षामंत्री छत्तीसगढ़